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31 May 2018 · 1 min read

वो बंदगी लेकर गया

—–ग़ज़ल——
2212–2212

वो ज़िन्दग़ी लेकर गया
वो हर खुशी लेकर गया

रब मान कर पूजा जिसे
वो बंदगी लेकर गया

जिसके लिए था दिल खिला
वो ताज़गी लेकर गया

देकर के मुझको तीरग़ी
खुद चाँदनी लेकर गया

बसता था जिन साँसों में अब
वो सांस भी लेकर गया

गाते थे जो “प्रीतम” कभी
वो नग़्मग़ी लेकर गया

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)

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