वो नाकामी के हजार बहाने गिनाते रहे
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वो नाकामी के हजार बहाने गिनाते रहे
हम जूतों में पांव के छाले छुपाते रहे
ऐसे भुल्लकड़ हैं मोबाइल में खो गए
और घंटों मोटर का पानी गिराते रहे
कामयाबी के परचम हाथ में लहराये
हसद में लोग क्या- क्या सुनाते रहे
मंजिल से इक बार फिसल क्या गये
मेरे आंसु से दिल की आग बुझाते रहे
ऐसे तो कभी मतलब नहीं रखते हैं
चोट लगी तो हाल पुछ मुस्कुराते रहे
अपने उलझन से तो हैं ही परेशान
दूसरे अपना सुनाकर पकाते रहे
वो ढिठाई से मेरा हक मारते हैं
हम हक मांगने में शरमाते रहे।
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला -कुशीनगर