वो नई नारी है
वो नई नारी है….
पहुँच गई गगन तक वो देखो
अब चाँद छूने की बारी है
चमक रही संग तारों के ही
वो आज की नई नारी है
भय,चिंता, से सदा दूर रहती
उन्मुक्त गगन में परिंदे सी
पंख पसारे स्वतंत्र विचरती
कर्त्तव्य पथ पर अड़ी रहती
साहस,निर्भीक बन डटी रहती
रखके सामंजस्य घर संसार में
धैर्य अपने हॄदय में धरती
इक सुंदर मीठी फुलवारी है
वह आज की नई नारी है
कभी कर्तव्य पथ पर चलती
कहीं जीविका हेतु ढलती
विधाता की कृति न्यारी है
वो आज की नई नारी है
शहादत को फिर देकर कांधा
अब श्मशान भी जाने लगी
ले कोमल देह नारी सी
कर्म पुरुष सा करने लगी
नियति ये सब पर भारी है
वो आज की नई नारी है
समेट आँचल में खुशियाँ सारी
ममता,प्रेम,स्नेह लुटाती
दुलार अपनो को दे जाती
करुणा की इक क्यारी है
वो आज की नई नारी है।।
✍🏾”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक