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10 May 2024 · 1 min read

वो दिन भी क्या दिन थे

वो दिन भी क्या दिन थे
ना मतलब की यारी थी
और ना ही मतलबी यार थे
आज जाना बचपन सच में कितना नादान
और कितना भोला था
मानो कोई अबोध बालक
सुबह के तमाम झगड़े और
सभी शिकायतों के निपटारे
शाम होते ही कन्धों में हाथ डालकर
पल भर में हो जाया कराते थे
आज़ न वो यार हैं
और ना ही वो सुनहरे नादान पल
होश संभालते ही जितने भी यार मिले
सब के सब मतलबी यार निकले
मतलब साधते ही
पल भर में जुदा हो गए
काश, बचपन फिर से लौट आए
गांव की माटी की सुगंध में नहा कर

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 110 Views

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