वो गले मुझको लगाएं तो कोई बात बने
हाथ से हाथ मिलाएं तो कोई बात बने
वो गले मुझको लगाएं तो कोई बात बने
ख़्वाब पलकों पे सजाएं तो कोई बात बने
प्यार हमसे भी जताएं तो कोई बात बने
हम न मानेंगे शिकायत का बुरा भी उनकी
वो मगर हंस के लगाएं तो कोई बात बने
एक दो दिन की नहीं बात है जीवनभर की
उम्रभर साथ निभाएं तो कोई बात बने
रूठ जाने पे सदा हमने मनाया उनको
आज वो हमको मनाएं तो कोई बात बने
मश्विरा रोज़ वो देते हैं पुराना छोड़ो
इक नया दौर भी लाएं तो कोई बात बने
शाख़ पर घर हैं परिन्दों के ठहरने दो उन्हें
वो परिन्दे न उड़ाएं तो कोई बात बने
क़ाफ़िले-ज़ीस्त में रहबर हैं सभी लेकिन वो
रहनुमा बन के दिखाएं तो कोई बात बने
वो ग़ज़ल सबको सुनाएं तो मज़ा आ जाए
रंग ‘आनन्द’ जमाएं तो कोई बात बने
– डॉ आनन्द किशोर