वो और राजनीति
लठैत बुलाए थे बकैत के लिए,
धरना सजाया था टिकैत के लिए।
काम नहीं आया पंजाब भी गया,
क्या करूं मैं वोट के डकैत के लिए।।
मेरे उठाए मुद्दे सब फ्लॉप हो रहे हैं,
आशीष सभी के, अभिशाप हो रहे है।
जाति भी बतादी मंदिर भी खूब घूमे,
पर धीरे धीरे बाहर सब पाप आ रहे हैं।।
न चल सका वो नारा चौकीदारचोर वाला,
दो दो चुनाव हारे अब निकलेगा दिवाला।
देता नहीं है चंदा अब कोई भी व्यापारी,
है बंद गोरखधंधे हो कटमनी या हवाला।।
था INDIA बनाया पर कोई बन न पाया,
हो बंगाल बिहार यूपी बस हो रहा सफाया।
यात्रा जो हो रही है उससे नहीं है आशा,
मम्मी नहीं समझती, मैने है जो गंवाया।।
न थी न है न होगी अब राजनीति मुझसे,
यात्रा के बाद मैं ये घोषित करूंगा सबसे।
अब नहीं सुनूंगा मैं बात किसी की भी,
पार्टी का अब भला हो दुआ है मेरी रब से।।