वोट की राजनीति
आवाम का शिकार करने आसमान से परिंदे उतरे हैं,
मुफलिसी का मजा देने चाँदी सोने के बर्तन निकलने हैं।।
तुम मर जाओ भूख-बेकारी में तड़फ-तड़फ कर ही,
तुम्हारे टैक्स की कमाई खाने रावण के दो गुने चेहरे उतरे हैं।।
जमीन को बना दिया है जन्नत चूसकर खून जनता का,
जनता को जुहन्नम में ले जाने हवाई जहाज बीस उतरे हैं।।
तुम मानो या ना मानो वो तुमको अमीर का दर्जा दे ही देंगे,
इसी झूठ को सफेद पन्नों पर साबित करने हस्ताक्षर बीस उतरे हैं।।
जमीर भूलकर अपना मीडिया बनी है चीयर लीडर इस खेल की,
इस ट्वेंटी-ट्वेंटी मैच को जीतने बल्लेबाज मैदान में उतरे हैं।।
अपनी अय्यासी को देश की तरक्की कह ही दिया है उन्होंने,
इसी अय्यासी को वोट में बदलने चौकीदार के हमसाये उतरे हैं।।
ये शासन है जम्हूरियत का या शाह बहादुर जफर का,
उसी ढहती मुगलियत का मजा लेने विदेशी कम्पनी फिर हिंदुस्तान उतरे हैं।।
prAstya….(प्रशांत सोलंकी)