वैष्णों भोजन खाइए,
वैष्णों भोजन खाइए,
पीजै शीतल नीर।
नेक पाक जीवन जियो,
नित भजिये रघुवीर।
नित भजिये रघुवीर,
फ़क़त दारा संग रहिये।
परनारी को मात या,
भगनी दुहिता कहिए।
अंड मांस मछली तजो,
मय से रहियो दूर।
हक हलाल दौलत गहो,
बरकत हो भरपूर।
मानव तन का लक्ष्य है,
हरि से हो जाये मेल।
जमन मरण के संग मिटे,
चौरासी का खेल।
कह सृजन कविराय,
जगत है काल पसारा।
पूरा सतगुर खोजिये,
और पाइए उद्धारा।
गुर के द्वारे जाय कर,
उनकी करो गुलामी।
सतगुर नाम लखाय कर,
भेजें धाम अनामी।
सतीश सृजन