*वैश्विक समन्वय और भारतीय विमर्श : डॉ पुष्कर मिश्र और आरिफ म
वैश्विक समन्वय और भारतीय विमर्श : डॉ पुष्कर मिश्र और आरिफ मोहम्मद खान का विद्वत्तापूर्ण संबोधन
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लेखक: रवि प्रकाश पुत्र श्री राम प्रकाश सर्राफ, बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 61 5451
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‘वैश्विक समन्वय और भारतीय विमर्श’ विषय पर अद्भुत चर्चा रामपुर रजा लाइब्रेरी में 15 सितंबर 2024 रविवार को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
डॉक्टर पुष्कर मिश्र
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लाइब्रेरी के नए निदेशक डॉ पुष्कर मिश्र के प्रथम दर्शन का सौभाग्य भी यह था और उनकी विद्वत्ता का परिचय भी प्रथम बार प्राप्त हुआ। ऋग्वेद की ऋचा से आपने भारतीय विमर्श की चिंतन धारा को श्रोताओं के सामने रखा। कहा कि सद्विचार कहीं से भी आऍं, उन्हें आने दिया जाए। उपनिषद के तत्त्वमासि सुप्रसिद्ध वाक्य को उद्धृत करते हुए आपने कहा कि भारतीय दर्शन इस बात में विश्वास करता है कि ‘जो तू है वही मैं हूं’। यत्र तत्र सर्वत्र परमात्मा मुझ में और तुम में अर्थात सब में है।
डॉक्टर पुष्कर मिश्र ने कहा कि भारतीय चिंतन में विभेद का स्थान नहीं है। राजसत्ता और रिलिजन के नाम पर रक्तपात हुए हैं, जबकि धर्म ने बैर-विहीन मार्ग प्रशस्त किया है।
हम धर्मो रक्षति रक्षित: में विश्वास करते हैं। इसका सीधा-साधा अभिप्राय जीवन शैली को प्रकृति और सत्य के अनुरूप बनाना है।
आचार: परमो धर्म: इस सूक्ति को उद्धृत करने के साथ डॉक्टर पुष्कर मिश्र ने धर्म की सीधी-सादी एक परिभाषा यह बता दी कि जब कुछ समझ में नहीं आए तो जो समाज में ज्ञानवान और तपस्वी लोग आचरण करते हैं; वैसा ही मार्ग अपना लो। कुछ समझ में नहीं आए तो तुलसीदास जी की कही गई यह पंक्तियां स्मरण रखो:-
परहित सरस धर्म नहीं भाई
परपीड़ा सम नहीं अधमाई
इससे अच्छी धर्म की और अधर्म की परिभाषा भला क्या होगी ! आपने बताया कि भारत की मिट्टी में ऋषि-मुनियों का ओज बसा हुआ है। यह धरती यमराज से प्रश्न करने वाले नचिकेता की है। यहॉं पिता को गर्भ में ही टोक देने वाले परम विद्वान अष्टावक्र हुए हैं।
भारत का विमर्श विभिन्न मतों का है। विभिन्न मतभेदों का भी है। लेकिन मतभेदों का रास्ता शांतिपूर्ण वाद-विवाद और पक्ष-प्रतिपक्ष के बीच से होकर गुजरता है। इस धरती पर एक महापुरुष ने आधुनिक समय में हमें सत्याग्रह और अहिंसा का मार्ग सिखाया, जो हिटलर के रास्ते से बिल्कुल अलग था। आज भी हम वैश्विक समन्वय की दिशा में रूस और यूक्रेन के युद्ध को समाप्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं ।
भारत का आदर्श रामराज्य है। एक ऐसा समाज जिसके बारे में तुलसीदास जी ने लिखा है :
दैहिक दैविक भौतिक तापा
रामराज्य काहऊॅं नहिं व्यापा
रामराज्य की सबसे बड़ी विशेषता पुष्कर जी ने यह बताई कि किसकी स्थापना की बुनियाद महात्मा भरत ने चौदह वर्ष तक कुटी में रहकर सब प्रकार के भोगों का परित्याग करते हुए एक संत की भांति बिता कर की थी। यही भारतीय विमर्श है, जो वैश्विक समन्वय के लिए पॉंच हजार वर्ष से कार्य कर रहा है।
आरिफ मोहम्मद खान
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केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भारत की संस्कृति को पॉंच हजार वर्ष से ज्यादा पुरानी बताया। कितनी ज्यादा पुरानी है यह संस्कृति, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। आपने कहा कि भारत की धरती में संस्कृत में ईश्वर का एक नाम अक्षर भी बताया गया है। अक्षर का तात्पर्य यह है कि जो कभी समाप्त नहीं होता। जिसका कभी क्षर अर्थात नाश नहीं होता। आपने बताया कि हर अक्षर में मंत्र की ताकत है । यह ताकत हर पेड़ की जड़ पत्ती आदि में भी है। हर व्यक्ति में कोई न कोई विशेषता होती है।बस उसे पहचानने वाला होना चाहिए। आपने बताया कि दुनिया की दूसरी सभ्यताओं के पास चाहे जो विशेषताएं हों ,लेकिन ज्ञान और प्रज्ञा के लिए पुरातन अतीत के समय से विश्व भारत की ओर देख रहा है।
अंग्रेजी राज के काले दिनों को याद करते हुए श्री आरिफ मोहम्मद खान का कहना था कि यह दौर था, जब विभिन्न स्थानों पर लिखा रहता था कि ”यहॉं पर भारतीयों और कुत्तों को भीतर आने की अनुमति नहीं है”। जो भेदभाव रंग, मजहब और भाषा के आधार पर होते थे उन्हें पॉंच हजार साल पहले भारत के ऋषियों में अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा अहम् ब्रह्मास्मि अर्थात जो तुझ में है, वही मुझ में है। जो आत्मा मेरे भीतर है, वही सबके भीतर है। अतः: न कोई छोटा है, न बड़ा है। यह वास्तव में सांस्कृतिक मूल्यों की उच्चता को दर्शाने वाला भारत का दर्शन था; जिसमें काले-गोरे रंग में कोई भेद नहीं माना गया। अन्यथा कुछ अन्य विचारों में यहां तक कहा गया था कि जिनका काला रंग होता है, उनके भीतर आत्मा नहीं होती। भारत की प्रज्ञा ने पॉंच हजार साल पहले केवल मनुष्य-मात्र के भीतर समानता का ही उद्घोष नहीं किया, अपितु हर जीवित प्राणी के भीतर समान आत्मा के दर्शन किए और सबसे प्रेम करना सिखाया।
विद्या विनय संपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पंडिता: समदर्शिन:।।
भगवद् गीता के पॉंचवें अध्याय के 18 वें श्लोक को उद्धृत करते हुए आपने बताया कि भारतीय मनीषा विद्वान ब्राह्मण, गौ, हाथी, कुत्ता अथवा चांडाल किसी में भेद नहीं करती; क्योंकि वह सब में समान ईश्वरीय तत्व की विद्यमानता को स्वीकार करती है। भारतीय दर्शन का मानना है कि हर व्यक्ति में दैवी तत्व है। हर व्यक्ति ब्रह्म को प्राप्त कर सकता है। यह दिव्यता का मानवीकरण था, तो मानव का दिव्यीकरण भी था।
कर्म का सिद्धांत गीता के माध्यम से विश्व को भारत की अनुपम देन है । एक कथा सुनाते हुए आरिफ मोहम्मद साहब ने अपने व्याख्यान में रोचकता लाने का प्रयत्न किया। आपने बताया कि एक बार एक कुत्ता अपनी शिकायत लेकर आया । उसने राजा से कहा कि महंत ने मुझे अकारण मारा है। अतः सजा के तौर पर महंत को ‘मुख्य महंत’ बना दिया जाए। सुनकर सब चकित थे कि यह सजा हुई या पुरस्कार ? कुत्ते ने गहराई की बात यह बताई कि महंत का पद अथवा कोई भी उच्च पद पाकर व्यक्ति मनुष्यता को भूल जाता है। वह बिना जवाबदेही के कार्य करता है। मनमानी और पाप उसके आचरण में उतर आते हैं। कुत्ते ने कहा कि पिछले जन्म में मैं भी मुख्य महंत था अर्थात उच्च पदाधिकारी था। मैंने मनमानी की। इसकी सजा मुझे आज कुत्ते की योनि में जीवन व्यतीत करते हुए भुगतना पड़ रही है तात्पर्य यह की कर्म के सिद्धांत से कोई बच नहीं सकता गांधारी को भी आपने बताया कि गर्म पानी में कीड़े के 100 एंड मार देने के कारण अपने 100 पुत्रों को मृत्यु के मुख में प्रवेश करते हुए देखना पड़ा था यह कर्म की सजा है
वसुधैव कुटुंबकम् के भारत के प्राचीन आदर्श को दोहराते हुए अपने श्रोताओं को बताया कि हमने संपूर्ण वसुधा को एक कुटुंब के रूप में देखने का ही प्रयास किया है।
आरिफ मोहम्मद खान साहब ने ईरान के फारसी भाषा के प्रसिद्ध कवि शेख सादी के इन विचारों को भी उद्धृत किया कि किसी का दिल जीतना हज करने से अच्छा है। किसी टूटे हुए दिल के ऑंसू पोंछना, किसी बीमार का हाल-चाल जानना अथवा किसी भूखे को खाना खिलाना सबसे बड़ा पुण्य है।
“फिरता है जमाने में खुदा भेस बदलकर” इन पंक्तियों को आपने श्रोताओं को समक्ष प्रस्तुत किया। आपने कहा कि दूसरों का मूल्यांकन करना छोड़ दो, क्योंकि सब अपने-अपने हिसाब से सत्य की ओर जाने का प्रयास कर रहे हैं। उनका मूल्यांकन ईश्वर ही कर सकता है।
विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि जिस तरह विभिन्न नदियां समुद्र में जाकर मिल जाती हैं, ठीक उसी प्रकार हम अलग-अलग मत और विचारों के साथ ईश्वर की ओर बढ़ने में विश्वास करते हैं।
वस्तुत: आरिफ मोहम्मद खान साहब ने कहा कि ईश्वर एक एहसास का नाम है। जिसने उस एहसास को महसूस कर लिया, वही सफल है।
आपने कहा कि मनुष्य चार प्रकार की गलतियां करता है। पहली यह कि ईश्वर की प्रशंसा में उसने भजन गाए और ईश्वर को शब्दों में बांध दिया; जबकि वह शब्द से परे है। दूसरा गुनाह ध्यान लगाकर ईश्वर की छवि बना ली, जबकि उसकी कोई शक्ल नहीं हो सकती। तीसरा गुनाह यह है कि वह ईश्वर को प्राप्त करने के लिए तीर्थ में गया, जबकि स्थिति यह है कि परमात्मा सब जगह मौजूद है।
भारतीय विमर्श किसी राजसत्ता की शक्ति से नहीं अपितु आध्यात्मिक मूल्यों से प्रस्फुटित हुआ है। यह शाश्वत मूल्य हैं, जो भारत के आध्यात्मिक चिंतन की गहराइयों से उत्पन्न हुए और जिन्होंने वैश्विक समन्वय की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कार्यक्रम में मंच को उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री श्री राठौर तथा रामपुर के भूतपूर्व नवाब रजा अली खान के पौत्र (नवाब मुर्तजा अली खान के पुत्र) नवाब मोहम्मद अली खान ने भी मंच को सुशोभित किया।
कार्यक्रम का आरंभ और समापन राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ से हुआ, जिसकी प्रस्तुति रामपुर रजा लाइब्रेरी के विद्वान शोधकर्ता सैयद नावेद कैसर साहब ने की।