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14 May 2024 · 1 min read

वैवाहिक चादर!

बड़े प्यार से माँ ने अपने
ख़ाली समय में सिखाया था
अपनी बेटी को कढ़ाई और बुनाई
और इस कला को संस्कार की
गठरी में बांध दिया था चुप-चाप।

बेटी की वैवाहिक जीवन की
पहली रात के लिए प्यार से
माँ ने बनवाई थी उसके हाथों से
एक सुर्ख़ लाल चादर
जिसे विदाई के साथ बाँध
भेज दिया था उसके ससुराल
बोला था ये मात्र चादर नहीं है बेटी
ये है तेरी सुखद भविष्य की कुंजी
सम्भाले रखना संस्कार एक हाथ से
और एक हाथ से ये चादर।

बेटी ने माँ का साथ समझ
हृदय से लगा लिया वो चादर
और बिछा दी सुहाग की सेज पर
जहाँ सब नया, सब था अलग।

उसे कहाँ पता था कि
सोने-चाँदी की
चकाचौंध में बेजान कोने में
फेंकी जाएगी ये चादर।

पहली ही रात
उसके अरमानों के साथ
मैला हो गया वो चादर
सिलवटें पड़ गई इतनी
जो ना मिट सकती थी
ना ही दाग धुल सकते थे।

रगड़ा उसे दम लगाकर
बार बार सुखाया धोकर
पर कहाँ उसे पता थी
माँ के प्यार की कद्र ना होगी
बात-बात पर
माँ को याद किया जाएगा
हर बात पे ताने
और जलील होगा
संस्कार की गठरी और
उसका वो चादर
जिसे बड़े प्यार से
बनाया था
माँ के साथ मिलकर।

फिर भी सम्भाले रखा बेटी ने
जोड़ से पकड़े रखा हरदम
एक हाथ में संस्कार की गठरी
और एक हाथ में वो मलिन चादर।

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