कविता : वैराग्य
आसक्ति हुई जब माया से,
मृगतृष्णा में मन दौड़ा जाए।
तृप्ति कभी भी यूँ मिले नहीं,
कम दिखता जितना जोड़ा जाए।।
फल आसक्ति त्याग मानव तू,
वैराग्य तभी धारण कर पाये।
भटकाव समझ सांसारिकता,
ख़ुशी जितेन्द्रयिता सब हर लाये।।
काम क्रोध लोभ मोह भूलो,
अहंकार से दूर रहो प्यारे।।
वरना जाने कभी कहीं भी,
देखोगे रोकर दिन में तारे।।
राजमहल के सुख छोड़ चले,
चले खोजने जगत् सत्य गौतम।
संसार दुखों का घर पाया,
कर्म मिले सच बाकी भ्रम “प्रीतम”।।
वैराग्य लगा जिसको सच्चा,
आम नहीं मानव भगवान हुआ।
संत महापुरुष सभी शामिल,
मालिक-सम जिनका सम्मान हुआ।।
#आर.एस ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना