Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Feb 2024 · 2 min read

“वेश्या का धर्म”

पाटलिपुत्र के चक्रवर्ती सम्राट अशोक की अनूठी कहानी थी,
नगरवधू विंदुमती एक वेश्या की कहानी थी।

जो दोनों के बीच की,
एक घटना थी,
बात हल्की नही,
बड़ी गहरी थी।

पाटलिपुत्र में अशोक गंगा के, किनारे खड़ा था,
भयंकर बाढ़ आई थी, भयभीत वो खड़ा था।

मन ही मन सोच रहा था क्या गँगा उल्टी बह सकती है,
कि गंगा अपने स्रोत की ओर मुड़ सकती है।

तभी वेश्या अशोक के पास आ गई,
उसने कहा आदेश करें, और हँसने लग गई।

वेश्या बोली हाँ मैं उल्टी गंगा बहा सकती हूं,
अशोक चौंका, कौन सी कला है, जो ऐसा कर सकती हो।

उसने कहा मेरी निजता का सत्य,
मेरे जीवन का सामर्थ्य और सत्य,
आँखे बंद कर जपने लगी,
सम्राट खड़ा था गंगा उल्टी बहने लगी।

सम्राट वेश्या के, चरणों मे गिर पड़ा,
क्या वेश्या का भी कोई धर्म है भला।

तू शरीर बेंच रही है, सौंदर्य बेंच रही है,
इससे घटिया कोई व्यवसाय हैं नही।

विंदुमति बोली मेरी शिक्षा में गुरु से यही मिला,
केवल एक सूत्र, मोक्ष के लिए मिला।

चाहे धनी आये,
चाहे गरीब आये,
चाहे शुद्र आये,
चाहे ब्रह्मण आये।

चाहे सुंदर पुरूष आये,
चाहे कुरूप आये,
चाहे जवान आये,
चाहे रूग्ण आये।

समभाव रखा, किसी से ना द्वेषः किया, ना आसक्ति किया,
ना लगाव दिखाया, ना मोह किया,
ना खुश हुई, ना दुख प्रकट किया।

अपना जीवन कर दिया,
दूसरों पर समर्पित,
वेश्या भी नारी है,
हुई जो असीमित।

पुरुष प्रेम भी शर्तों पर करता है,
जबकि प्रेम बंधन नही मुक्ति है,
कौन कहता है वेश्या का धर्म नही,
एक नारी मैं भी हुँ, मुझमे क्या मर्म नही।।

लेखिका:- एकता श्रीवास्तव✍️
प्रयागराज

Language: Hindi
253 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ekta chitrangini
View all
You may also like:
अमीर-गरीब के दरमियाॅ॑ ये खाई क्यों है
अमीर-गरीब के दरमियाॅ॑ ये खाई क्यों है
VINOD CHAUHAN
छप्पय छंद विधान सउदाहरण
छप्पय छंद विधान सउदाहरण
Subhash Singhai
दलित साहित्य / ओमप्रकाश वाल्मीकि और प्रह्लाद चंद्र दास की कहानी के दलित नायकों का तुलनात्मक अध्ययन // आनंद प्रवीण//Anandpravin
दलित साहित्य / ओमप्रकाश वाल्मीकि और प्रह्लाद चंद्र दास की कहानी के दलित नायकों का तुलनात्मक अध्ययन // आनंद प्रवीण//Anandpravin
आनंद प्रवीण
गमले में पेंड़
गमले में पेंड़
Mohan Pandey
प्यार और परवाह करने वाली बीबी मिल जाती है तब जिंदगी स्वर्ग स
प्यार और परवाह करने वाली बीबी मिल जाती है तब जिंदगी स्वर्ग स
Ranjeet kumar patre
मन को मना लेना ही सही है
मन को मना लेना ही सही है
शेखर सिंह
हर चीज़ पर जल्दबाज़ी न करें..समस्या यह है कि आप अपना बहुत अध
हर चीज़ पर जल्दबाज़ी न करें..समस्या यह है कि आप अपना बहुत अध
पूर्वार्थ
दवाइयां जब महंगी हो जाती हैं, ग़रीब तब ताबीज पर यकीन करने लग
दवाइयां जब महंगी हो जाती हैं, ग़रीब तब ताबीज पर यकीन करने लग
Jogendar singh
భారత దేశం మన పుణ్య ప్రదేశం..
భారత దేశం మన పుణ్య ప్రదేశం..
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
कभी जलाए गए और कभी खुद हीं जले
कभी जलाए गए और कभी खुद हीं जले
Shweta Soni
हम तुम्हारे हुए
हम तुम्हारे हुए
नेताम आर सी
फूल को,कलियों को,तोड़ना पड़ा
फूल को,कलियों को,तोड़ना पड़ा
कवि दीपक बवेजा
दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
Dhirendra Singh
मुक्तक,,,,,,
मुक्तक,,,,,,
Neelofar Khan
"खुद का उद्धार करने से पहले सामाजिक उद्धार की कल्पना करना नि
डॉ.एल. सी. जैदिया 'जैदि'
आज  उपेक्षित क्यों भला,
आज उपेक्षित क्यों भला,
sushil sarna
नींद
नींद
Diwakar Mahto
*सच्चा दोस्त*
*सच्चा दोस्त*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
भोर का दृश्य
भोर का दृश्य
surenderpal vaidya
वो तारीख़ बता मुझे जो मुकर्रर हुई थी,
वो तारीख़ बता मुझे जो मुकर्रर हुई थी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
59...
59...
sushil yadav
પૃથ્વી
પૃથ્વી
Otteri Selvakumar
शब्दों की मशाल
शब्दों की मशाल
Dr. Rajeev Jain
जीवन भर मरते रहे, जो बस्ती के नाम।
जीवन भर मरते रहे, जो बस्ती के नाम।
Suryakant Dwivedi
झुर्रियों तक इश्क़
झुर्रियों तक इश्क़
Surinder blackpen
तुम्हारी आंखों के आईने से मैंने यह सच बात जानी है।
तुम्हारी आंखों के आईने से मैंने यह सच बात जानी है।
शिव प्रताप लोधी
"बेचारी की फ़ितरत में, राग़ नहीं है ग़म वाला।
*प्रणय*
3795.💐 *पूर्णिका* 💐
3795.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
मुझे जब भी तुम प्यार से देखती हो
मुझे जब भी तुम प्यार से देखती हो
Johnny Ahmed 'क़ैस'
ईश्वरीय समन्वय का अलौकिक नमूना है जीव शरीर, जो क्षिति, जल, प
ईश्वरीय समन्वय का अलौकिक नमूना है जीव शरीर, जो क्षिति, जल, प
Sanjay ' शून्य'
Loading...