वेदना हृदय की
जब काली अंधियारी रातों में,
प्रियतम की याद सताती है।
जब आँखों में अश्रुधारा,
लहु बनकर बह जाती है।
जब चुप्पी से चीख़ निकालकर,
आग कंठ में लगाती है।
उसी विरह की वेदना संग
तेरी प्रियतमा निपट अकेले सो जाती है।
जब तुम्हारे अवलोकन को,
हृदय तड़प सा जाता है।
जब तुम्हारे स्वर सुनने को,
कर्ण गदर मचाता है।
तुम अपने जीवन मे ख़ुश हो,
मस्तिष्क ये याद दिलाता है।
बस उसी प्रेम की वेदना में ,
तेरी प्रियतमा को फिर दिल समझाता है।
जब अरमानों की अर्थी पर ,
निष्फल कर्मों के फूल सजते हैं।
जब मिलन की प्यास लिए,
विरह के फ़न डसते हैं।
मूर्छित होता साहस सारा,
अभिलाषा क्रंदन करते हैं।
बस उसी शोक की वेदना में,
तेरी प्रियतमा के व्यथित मन सिसकते हैं।
स्वरचित
मोनिका गुप्ता