*वृक्ष लगाओ हर साल*
वृक्ष लगाओ हर साल
तपती है धरती बनकर
ज्वाला सी,
शहरीकरण के चाहत में
उजड़े सब छांव जी।
तपती धूप के प्रकोप से,
जलते अब हैं पांव जी।
वृक्षों से है धरती की सुंदरता
और शीतल जल
जन्म से लेकर मृत्यु तक
ना है, उपकार कोई उसके कम
काट लेते अनगिनत पेड़
पर लगाते हैं गिनतियां कर।
वृक्ष लगाना है हर साल
तभी रहेगा धरती में प्राण।
अपने-अपने स्वार्थ के लिए
हम करते इसका उपभोग।
तनिक सबके जीवन दान को
वृक्ष लगाओ अनेकों अनेक।
मेरी धरती करती दिन-रात पुकार,
वृक्ष लगाओ अनेक और करो श्रृंगार।
इनके निर्मल छांव को,
तरस रहा है यह जग सारा।
रहने दो हर पौधों को,
बढ़ने दो हर वृक्ष को,
वृक्ष लगाकर बने हम महान।
कर दे सबके ऊपर एक उपकार।
सदा रहेगा जग में नाम हमारा।
बना दो इस धरा को हरा-भरा।
ये काम है हमारा और तुम्हारा।
रचनाकार
कृष्ण मानसी (मंजू लता मेरसा)
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)