वीर गाथा – डी के निवातिया
वीर गाथा
_____________
बहुत सुनी होंगी कहानिया रांझा और हीर की
आओ तुम्हे, आज सुनाये, गाथा एक वीर की
मर मिटते है जो, मातृभूमि पर हॅसते – हँसते
अँखियो में आंसू भरकर सुनाये गाथा वीर की !!
सीमा पर शहीद होने की खबर जब घर आई थी
सन्नाटा था पूरे गांव में शोक की लहर छाई थी
सुनकर दौड़ पड़ा था हर कोई जो जिस हाल में
चीत्कार की आवाज जब उसके घर से आई थी !
कैसा अनर्थ हुआ आज धरा पे कैसी विपदा आई थी
कल ही तो उसने जन्म दिन की खुशिया मनाई थी
इस हाल में तो ना वापस आना था प्यारे राजदुलारे
ऐसे तो न बिटिया ने घर आने की गुहार लगाईं थी !
सुनी थी जिसने भी ये खबर, ह्रदयाघात घना हुआ था
आँखों से बह रहे थे आंसू, सीना गर्व से तना हुआ था
भाग दौड़ में भी हो सकता सन्नाटा प्रथम बार ये देखा
पार्थिव शरीर आ रहा वीर का जो देश पर फ़ना हुआ था !
सैनिक दस्ते की अगवानी में आज आया था वीर
तिरंगे में लिपटकर आया था उसका पार्थिव शरीर
भीड़ भाड़ और गहमा गहमी ग़मगीन माहौल में
दर्शन करने को हर कोई आज हुआ जाता अधीर !!
क्षत विक्षत हुए शरीर को जब कांधो से उतारा गया
दर्शन को उमड़े समूह से एक एक कर पुकारा गया
बारी आयी जब सुत की, चीख उठा था वो नन्हा वीर
आह ! कितनी क्रूरता, बेदर्दी से पापा को मारा गया !!
रोती बिलखती बदहवास पत्नी की हालत बुरी थी
देखकर जाबांज का शव धड़ाम से धरा पे गिरी थी
लुट गया था पूर्ण संसार ये कैसी आफत की घड़ी
हाय रे ! नियति तूने ये कैसी किस्मत लिखी थी !!
रोते रोते व्यथा अपने मन कि वो सुनाने लगी
कल हुई थी बाते साजन से उन्हें दोहराने लगी
कह रहे थे चिंता न कर अकेला सब पर भारी हूँ
लौटना था, पर क्या इस हाल में, चिल्लाने लगी !!
इतनी भीड़ क्यों है, क्यों मम्मा रोती मुझे बताओ
आज आने वाले थे पापा कहाँ है मुझे भी मिलाओ
गोद उठाके बच्ची को जब देह के पास लाया गया
रुदन चीत्कार से कह उठी पापा मुझे गले लगाओ !!
देख हाल जिगर के टुकड़े का माँ से रहा न गया
स्तब्ध हुई थी काया, लबो से कुछ कहा न गया
मानो धरती फट गयी, आसमान भी झुक गया
छाती पीट बोली मेरा लाल बिना मिले चला गया !!
खबर मिलते ही ससुराल से बहना दौड़ी आई थी
किस बैरी ने दुनिया लूटी जो दुश्मनी निभाई थी
सुन बहन कि करुण पुकार तीनो लोक हिल गये
कहाँ गया वीर मेरे तूने कसम मेरी रक्षा कि खाई थी !!
एक कोने में बैठे बाप बेचारा का हाल बुरा था
हुआ जीवन में कौन पाप,कर ये मलाल रहा था
मै अभागा किस्मत का मारा क्यों जीवित हूँ
बूढ़े काँधे पे रख बेटे कि अर्थी बेहाल चला था !!
संभाल रहे थे सब मिलकर एक दूजे को अब कहा न जाये
हो रहा था गुणगान किस्से वीरता के सुन साँसे थम जाये
दुःख असहाय था, फिर भी गर्व सीने में हिलोरे मार रहा
निर्झर बहते मेरे भी नैना, किस्सा मुझ से कहा न जाये !!
आँखे रोती, मन भारी है, फिर भी सीना गर्व से फूले
धन्य हो जाये वो प्राणी, जो तुम्हारी चरण धूलि छूले
नमन धरती माता को, नमन है उस सूत जननी को
बार-बार अपनी कोख वारे तुझसा पूत जो आंगन झूले !!
!
!
!
डी के निवातिया !!