वीर और विरह
बँधे एक डोर..वीर और विरह!
मैंने तुझसे बांधी अमर प्रेम की डोर
डोर अटूट बँधी तेरी देश प्रेम की ओर
तुझमें लीन मैं बेसुध प्रेम पुजारन
भक्ति तेरी लहराता तिरंगा आजीवन
आज़ादी की आग दहकाते हर बारी
इत लघु उर सुलगे विरह की चिंगारी
हुंकारते तुम रख मृत्यु-मुख पर चरण
तिल तिल मरती रोज़ मैं हज़ारों मरण
सिंहनाद तेरा सरहद डोले व्योम फट जाए
वियोग वेदना मेरा अन्त:स्थल चिरती जाए
पुन्य वेदी पर हँस बलिदान दिया अरिजीत
मैं तज प्राण संग चली निभाने मिलन पुनीत
मैं तेरी सखा,साखी तेरे वीरत्व का हर छोर
आमरण मैं तुझसे तू देश से बँधे एक डोर
रेखा
कोलकाता