वीर आजाद
वीर चन्द्रशेखर आजाद जी को समर्पित :
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नौजवानों हर जुल्म के आघात को ललकारता हूं ;
हर दम्भ के पाखण्ड के सौगात को ललकारता हूं।
कातर स्वरों से न्याय की, नहीं भीख मांग सकता कभी ;
विप्र हूं , हर संघट्टों में विलीन हो जाऊं कभी !
भाव अतिशय मातृभूमि को , लोकवन्दित है समर्पित ,
शीश-भाल प्रतिपल समर्पित , प्राण है प्रतिपल समर्पित !
दुराग्रहों के सार को निश्चय धूमिल कर दूं सदा ;
कंटकों के धार को विनष्ट कर दूं सर्वदा ।
मुखमण्डल शोभित चतुर्दिक ,
विविध भाव आह्लाद हूं मैं ;
शूल-संशय-अन्तर-अव्ययों का , दम्भ नाशक आजाद हूं मैं !
रक्त-मज्जा-हड्डियों पर हो रहे आघात को ,
चीर संस्कृतियों के धवल-धार पर, प्रतिपल संघात् को !
विघटन की धारें खड़ी हो, लटकती मस्तकों पर तलवारें ;
आयुध के कंपन खड़े हों, चाहे प्रत्यक्ष कराल अंगारें ।
धार को दृढ़ता प्रतिष्ठित , वीरता संसार को,
प्राण लेकर सोख लेना विप्लवी अंगार को !
विप्लवी अंगार जीवन में प्रतिपल है समाहित ;
शून्य में निर्बाध हूं मैं, सृष्टि के नवयुग धारित !
युगों-युगों की झंझावातों में, शाश्वत शौर्य-शिल्प लाओ कभी ;
विराट सिंहगर्जना में , अनल गीत गाओ अभी !
मरना यदि हो , तड़प-तड़प , घुट कर मरना नहीं ;
सहस्त्रों राक्षसों को , दस्युओं को , मार कर मरना सही ।
मही-व्योम सर्वत्र व्याप्त सुस्थिरता का कारक मिलें ;
हर अव्ययों में दस्युओं का संहारक , उद्धारक खिलें !
वक्ष फाड़े शत्रुओं की , विद्वद् लेखनी अंधेरी धार को ;
प्रकटित जीवंत संस्कृति सार को , वीरता संचार को !
युग-युग की स्मरणीय मेरी मौन का ,
हे भारतवर्ष चीर गाथा रहे ;
हे सौंदर्य निकेतन राष्ट्र !
स्नेहिल आंचल में माथा रहे !
सप्तार्णव से सप्तसिंधु का सुघर नर्तन संवाद हूं मैं ;
सप्तद्वीप की सभ्यता का धवल कीर्ति आजाद हूं मैं !
✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’