वीरों नववर्ष मना लें हम
है तिमिर धरा पर मिट चुकी
आज भास्वर दिख रहे दिनमान ,
शस्य – श्यामला पुण्य धरा कर रही ;
वीरों तेरा जयगान !
शुभ मुहुर्त्त में,महादेव को,
सिंधु का अम्बु चढा लें हम…
वीरों नववर्ष मना लें हम…
जग को जिसने दी सत्य प्यार
धरा पर शुचिता और संस्कार
सिखला रहा जगत् को धर्म उपकार ;
और भी उचित-अनुचित व्यवहार…
हीन पडी सुसुप्त जीवन के,
व्यथित व्यसन छुडा लें हम…
वीरों नववर्ष मना लें हम…
ऋषि दयानंद, भारद्वाज आदि का गौरव,
यश फैलाता सर्वत्र ;व्यपोहति दुःख रौरव,
कुसुमित, प्रफुल्लित सुमन सुख सौरभ
प्राणियों का क्लेश, सदा हरते भैरव
वेधित खंडित भारत का काँटा,हिय से त्वरित छुडा लें हम…
वीरों नववर्ष मना लें हम…
‘लक्ष्मीबाई’-‘ऊधम सिंह’ सदृश धैर्य अप्रतिम् ,
कडक रही ‘मंगल पाण्डेय’- ‘बिस्मिल’ की बोली;
सुखदेव,राजगुरू,भगत सदृश असंख्य बलिदानी ,
नित- प्रति अरि वेध रहा,अद्य ‘चंद्रशेखर’ की गोली |
ऐसे त्यागी प्रबुद्ध अमर्त्य पुत्रों का,
नित- नित उत्साह बढा लें हम…
वीरों नववर्ष मना लें हम…
नर्मदा नित भारत की भाग्य-गाथा को तोल रही
गोदावरी,कावेरी सदा ‘मधुरम्’; प्राणियों में घोल रही,
गंगा-यमुना-सरस्वती की,
अमृत-धारा संगम से डोल रही;
आक्रांत ‘सिंधु’ की पावन जल-धारा
अब कडक होकर बोल रही|
ध्वस्त कर आतंक विभत्स, मंगल वेद-ध्वनि फैला लें हम…
वीरों नववर्ष मना लें हम…
जिसने काफिर संज्ञा दे एक पवित्र जाती को,
असंख्य अनेक कहर बरसाया
विध्वंस किया प्राचीनतम् यशगाथा,
कर अति बलात् बालों-वृद्धों को,
अग्नि-आतंक में झुलसाया|
करूण पुकार अभी भी बहुत,
कैसे दुःख-दर्द भूला लें हम…
वीरों नववर्ष मना लें हम…
बहुत कालखंड व्यतित हुए
संस्कृतियाँ कितनी हुयी विघटित;
लाखों छुट गये अपनों से,
असंख्य पलायन से विभित व्यथित
हल्दीघाटी सा संगठित हो,शिवाजी सा शौर्य चढा लें हम…
वीरों नववर्ष मना लें हम…
नदियों में आज जल ‘जल’ रहा ज्यों ?
वृक्षों से वन,वन से वन्यजीव हो लुप्त रहा क्यों ?
कणिकाएँ विस्फोटों की मिल घुल गयी रक्त संचार में;
क्षणिकाएँ रोगों की मिली हर छंद व्यवहार में
पर्यावरण को उन्नत कर,धरणी को स्वच्छ बना लें हम…
वीरों नववर्ष मना लें हम…
विकास के हर तथ्य में विनाश कैसा हो रहा,
विध्वंस कर संस्कृति-प्रकृति को,हताश जन-जन हो रहा,
है दिख चुका बहुत दृश्य भयावह,कैसा नादान बन सो रहा,
जीवों को कर दी विलुप्त,जननी ‘गैया’ को भी काट रहा
प्रकृति की जयगान कर,पग अमर्त्य पथ को बढा लें हम…
वीरों नववर्ष मना लें हम…
पावन होली अब बीत चुकी
नव-संवत्सर, शुरूआत हुयी
दे स्फूर्त्ति मरें भारत-‘आलोक’को
सम्मिलन की सच्ची यह बात हुयी
चैत्र-शुक्ल की प्रथम तिथि,
चिरभास्वर तेज फैला लें हम…
वीरों नववर्ष मना लें हम…
शस्य-श्यामला धरती माता,
कर मंगलमय पुकार रही;
रसिकों का हो रस-सिक्त ह्रदय,
वीरों का शौर्य-श्रृंगार वही |
नव युगल डूबे रहें रस में,
एकला मौज मना लें हम…
वीरों नववर्ष मना लें हम…
मंगल गाथा को गा लें हम…
वीरों नववर्ष मना लें हम…
अखंड भारत अमर रहे
वन्दे मातरम् !
जय हिन्द !
©
कवि आलोक पाण्डेय