विसर्जन
जो हाथ तत्पर थे सर्जन को अब तक
आज वो विसर्जन के पथ पर खड़े है।
थका है ये तन मन संवारते संवारते
है छलनी हुए हाथ सब पथ बुहारते ।
प्रकम्पित अति वायु से जीवनशिखा है
कहाँ तक दे ओट हाथ जलते रहेंगे ।
प्रभु अब न कुछ भी रहा मेरे वश में
उपक्रम सभी अब विवश हो चले है ।
समर्पित तुम्हें अब हारा हुआ तन मन
स्वअस्तित्व का अब विसर्जन विसर्जन ।
थामों सभी अब ये आशाएं नत सब
सभी स्वप्नों का तेरी देहरी विसर्जन ।
न सह पायेगा अब कोई भार ये मन
प्राप्त अधिकारों का विसर्जन विसर्जन।
न सुख का अर्जन न दुःख का भी वर्जन
हो जय या पराजय विसर्जन विसर्जन ।
मेरे कर्म, दृष्टि के अधिपति बनो प्रभु
मुझे अपने अनुसार ही ले चलो अब ।
न सामर्थ्य मुझमें है अब सर्जना की
विसर्जन स्वयं का है तुझमें समर्पण ।