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2 May 2024 · 1 min read

कविता

तू होता पास ना मेरे,
तुझे एज़्यूम करती हूँ।
बसा कर अपनी आँखों में
तुझे मख़दूम करती हूँ।

निहारूँ तुमको चुपके से
अगर कोई साथ हो मेरे।
मगर बैठी अकेली
फोटो तेरी ज़ूम करती हूं।

मैं जलती विरहा में तेरी
हाँ खुद को फ्यूम करती हूं।
तेरी मीठी सी यादों में
मैं खुद को ब्लूम करती हूं।

सोचकर तेरी बातों को
खुशी को धूम करती हूं।
दिखो ना तुम अगर मुझको
मैं खुद को ग्लूम करती हूं।

नीलम शर्मा ✍️

Asume- कल्पना
मख़दूम- पूजनीय
Zoom-तेज़ी से आकार बढ़ाना
Fume-धुआँ
Bloom-खिलना
Gloom- उदास

21 Views
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