विश्व में बस एक है
जड़ता-कटुता-हिंसा ने
सभ्यता को पंक बना दिया
मिट्टी के पुतले बनकर
मानवता को मुरझा दिया.
संस्कृति पर जो हमारी
द्वेषवश हंसते रहे
राष्ट्र की कीर्ति संपदा को
पद तले मलते रहे.
तोड़ पाये जो प्रथा को
वो विद्वान मिटता जा रहा
मानव ही मानव का
व्यवधान बनता जा रहा.
मधुरता का बोध ही
जाने कहाँ पर खो गया
ऐसा प्रतीत होता है
जन यांत्रिक सा हो गया.
छूट कर पीछे गया है
भावनाओं का प्यारा देश
अब सिर्फ केवल बचा है
कोलाहल और बैर-द्वेष.
आसूओं में दर्द की
बहती रही तश्वीर है
इस देश की हे विधाता
कैसी ये तक़दीर है.
निर्दयता के पावस घन पर
कम्पित मन रोता बेजार
क्रूर वक्त की पृष्ठ पर
है क्लेश-गम अंकित हजार.
हर दुख-विषाद भूलकर
मगन प्रसन्न सब हो रहा
अमृत भरा सुखद ये क्षण
तृप्ति प्रदान कर रहा.
सजा तिरंगा हर घर प्यारा
है रोम-रोम उल्लास भरा
भूलोक का गौरव मनोहर
बन आया है खास बड़ा.
असीम अखंड आत्मभाव
जिस देश में अनंत है
वही ऋषि सा भूमि अपना
विश्व में बस एक है.
भारती दास ✍️