Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Feb 2024 · 3 min read

वीरांगना अवंती बाई

वीरांगना अवंती बाई
××××÷÷×××××××
1
जब भारत के चप्पे-चप्पे,
शासक बने फिरंगी थे ।
धरा धर्म एकता प्रेम के,
नाशक बने फिरंगी थे ।
तब उनसे लोहा लेने को,
भूतल पर दुर्गा आई।
पिता जुझार सिंह हुए साथ,
माता जिसकी कृष्णाबाई।
सिवनी जिला ग्राम मनकेडी,
घर घर खुशियाँ थीं भारी।
कन्या नाम अवंती बाई,
गूंजी ज्यों ही किलकारी
था इकतीस अठारह सौ सन,
माह अगस्त सुहाई है।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में
लड़ी अवंती बाई है।
2
ठाट जमींदारी के घर थे,
सुख सुविधायें पाने में।
बचपन से हो गई निपुण,
कन्या तलवार चलाने में।
विक्रमादित्य संग में ब्याही,
बनी रामगढ़ की रानी।
लोधी वंश अंश की गरिमा,
कदम कदम पर पहचानी
राजा हुए अस्वस्थ राज की,
बागडोर रानी थामी।
आने न दी संचालन में,
किसी तरह की भी खामी।
अँग्रेजी शासक ने कर दी
मौका देख चढाई है।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में
लड़ी अवंती बाई है।
3
जुल्म सितम अन्याय ना सहे,
अत्याचार विरोधी है।
धरा धर्म की रक्षा करने,
वाला ही तो लोधी है।
राजा हैं अस्वस्थ राज के,
पूरे काज करूँगी मैं।
नहीं रामगढ़ दूँगी अपना,
करके युद्ध मरूंगी मैं।
रानी ने तलवार उठाई,
लेकर थोड़ी सी सेना।
टूट पड़ी गिद्धों के दल पर,
रणचंडी बनकर मैना।
खाकर हार भगा डलहौजी,
हाहाकार मचाई है।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में,
लड़ी अवंती बाई है।
4
झेल नहीं पाये राजाजी,
अधिक दिनों बीमारी को।
लावारिश हो गया रामगढ़,
समय की इस लाचारी को।
थे नाबालिग दोनों बेटे,
जिनको राज चलाना था ।
भेजा गोरे अधिकारी को,
लेकर यही बहाना था ।
ज्यों ही आकर राज्य हड़पने,
अफसर रुतबा झाड़ा है
दिया खदेड़ उसे रानी ने,
कर ललकार लताड़ा है ।
राज्य व्यवस्था अपने हाथों,
लेकर स्वयं चलाई है ।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में,
लड़ी अवंती बाई है।
5
राजा हुए स्वर्गवासी तो,
शोक रामगढ़ में छाया।
दुष्ट कमिश्नर ऐसे अवसर,
पर भी हमला करवाया,
रानी नहीं चूड़ियाँ तोड़ीं,
हमलावरों के सिर तोड़े।
भागे उल्टे पांव गधे बन,
शासन के भेजे घोड़े ।
करके जंग भुआ बिछिया में,
धूल चटाई गोरों को।
घुघरी,और मंडला तक में,
मजा चखाई गोरों को।
नरसिंहपुर मंडला जबलपुर,
रानी धूम मचाई है ।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में,
लड़ी अवंती बाई है ।
6
रचा कुचक्र बक्र दृष्टि कर,
देवहारी में घेरा है ।
रानी समझ न पाई अचानक,
पड़ा काल का फेरा है।
डरी नहीं न झिझकी किंचित,
लिये हौसला मरदानी ।
काट काट नर मुंड कर दिया,
दुश्मन को पानी पानी।
किये वार पीछे से अरिदल,
फिर भी लड़ी कड़ाई से
तनिक नहीं घबड़ाई रानी,
चहुँ दिश घिरी लड़ाई से ।
निकट समय देखा अपने पर,
खुद तलवार चलाई है।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में लड़ी
अवंती बाई है।
7
केवल लोधी वंश नहीं वह,
भारत माँ की बेटी थी।
देश प्रेम की थी ज्वाला वह,
नहीं किसी से हेटी थी।
हो कितना भी कठिन निशाना,
नहीं चूकने वाली थी।
सोये हुए गोंडवाने में,
प्राण फूंकने वाली थी।
नारी होकर गदर मचाकर,
नाम देश में कमा गई।
स्वतंत्रता की ज्योति जलाकर,
महाज्योति में समा गई।
रानी तेरे ऋणी आज हम,
यह यश गाथा गाई है।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में,
लड़ी अवंती बाई है।

गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
17/2/24

Language: Hindi
54 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
पावस की ऐसी रैन सखी
पावस की ऐसी रैन सखी
लक्ष्मी सिंह
दोस्ती
दोस्ती
Surya Barman
*गोरे से काले हुए, रोगों का अहसान (दोहे)*
*गोरे से काले हुए, रोगों का अहसान (दोहे)*
Ravi Prakash
कर्म-बीज
कर्म-बीज
Ramswaroop Dinkar
बड़ा ही सुकूँ देगा तुम्हें
बड़ा ही सुकूँ देगा तुम्हें
ruby kumari
*डॉ अरुण कुमार शास्त्री*
*डॉ अरुण कुमार शास्त्री*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
प्रेम की तलाश में सिला नही मिला
प्रेम की तलाश में सिला नही मिला
Er. Sanjay Shrivastava
#सामयिक_विमर्श
#सामयिक_विमर्श
*Author प्रणय प्रभात*
ये  कहानी  अधूरी   ही  रह  जायेगी
ये कहानी अधूरी ही रह जायेगी
Yogini kajol Pathak
"रंग भर जाऊँ"
Dr. Kishan tandon kranti
बहुत दोस्त मेरे बन गये हैं
बहुत दोस्त मेरे बन गये हैं
DrLakshman Jha Parimal
निरोगी काया
निरोगी काया
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
रोशनी सूरज की कम क्यूँ हो रही है।
रोशनी सूरज की कम क्यूँ हो रही है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
🥀 *अज्ञानी की कलम* 🥀
🥀 *अज्ञानी की कलम* 🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
सत्यता वह खुशबू का पौधा है
सत्यता वह खुशबू का पौधा है
प्रेमदास वसु सुरेखा
आओ प्रिय बैठो पास...
आओ प्रिय बैठो पास...
डॉ.सीमा अग्रवाल
हममें आ जायेंगी बंदिशे
हममें आ जायेंगी बंदिशे
Pratibha Pandey
मेरी औकात के बाहर हैं सब
मेरी औकात के बाहर हैं सब
सिद्धार्थ गोरखपुरी
माँ की छाया
माँ की छाया
Arti Bhadauria
2599.पूर्णिका
2599.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
उसे लगता है कि
उसे लगता है कि
Keshav kishor Kumar
नफ़रत सहना भी आसान हैं.....⁠♡
नफ़रत सहना भी आसान हैं.....⁠♡
ओसमणी साहू 'ओश'
वक़्त है तू
वक़्त है तू
Dr fauzia Naseem shad
मछली रानी
मछली रानी
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
चुन लेना राह से काँटे
चुन लेना राह से काँटे
Kavita Chouhan
बिना रुके रहो, चलते रहो,
बिना रुके रहो, चलते रहो,
Kanchan Alok Malu
मौसम कैसा आ गया, चहुँ दिश छाई धूल ।
मौसम कैसा आ गया, चहुँ दिश छाई धूल ।
Arvind trivedi
कर दिया है राम,तुमको बहुत बदनाम
कर दिया है राम,तुमको बहुत बदनाम
gurudeenverma198
जोगीरा
जोगीरा
संजीव शुक्ल 'सचिन'
@ खोज @
@ खोज @
Prashant Tiwari
Loading...