विश्व प्राणाधार को पहचानने में देर क्यों ?
विश्व प्राणाधार को पहचानने में देर क्यों ?
सभ्यता के उत्कर्ष को पहचानने में देर क्यों ;
उत्कर्ष के व्यवहार को अपना लेने में देर क्यों ?
संस्कृतियों के उत्थान को चढ़ा चढ़ा उर्ध्व सोपान में ,
शाश्वत सनातन धर्म को करने आत्मसात् ध्यान में ;
बोधगम्य पवित्र आधार को जानने में देर क्यों ,
भव्य प्रतिष्ठित देवालय को पहचानने में देर क्यों ?
बहुत मिल चुके हैं दु:सह कंटकों की आंधियां ,
वर्षों के सिंचित साध्य में घुस चुकी है व्याधियां !
ले स्वत्त्व के साकार को अब जानने में देर क्यों ;
विश्व की प्राणाधार को पहचानने में देर क्यों ?
क्षण-क्षण कण-कण में व्यवधान है अड़ा , भूमंडलीकरण के क्षोम में , क्रूर संधान है खड़ा ;
मां भारती के लाल को जागने में देर क्यों;
शत्रु के भिन्न-भिन्न रूप को, पहचानने में देर क्यों ?
सभ्यता महान है , ज्ञान में विज्ञान में
दर्शन व्यवहार में ,ध्यान में अनुसंधान में ;
तपस्वियों के त्याग को जानने में देर क्यों ;
ऋषियों के ज्ञान दर्शन को अपना लेने में देर क्यों ?
विक्षोभ के आघात में प्रतिपल संघात में ,
घीर चुका है राष्ट्र अब विप्लवी बरसात में ;
वैदिक शास्त्र दिव्य ज्ञान को बसा लेने में देर क्यों ;
अद्भुत शस्त्र के संचार को चला लेने में देर क्यों ?
सभ्यता के सार को पहचानने में देर क्यों ?
दिव्य प्राणाधार को बचा लेने में देर क्यों ?
✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’