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20 Sep 2021 · 1 min read

ग़ज़ल

ज़िंदगी से भी कहीं ज़्यादा मुहब्बत आपसे है
जो मिला है वो ख़ुशी वो प्यार दौलत आपसे है//1

वो दिया है आपने सोचा नहीं हमने कभी जो
ये शोहरत ये मस्तियाँ निस्बत मुरव्वत आपसे है//2

आपके बिन हाल ऐसा जो बहारों बिन चमन का
हर इनायत ज़ोर हिकमत दिल नफ़ासत आपसे है//3

हर अदावत छोड़ दी हमने तुम्हें पाकर क़सम से
इक नशा है आपका अब ये शराफ़त आपसे है//4

दौर उसरत का भुलाकर राह ज़न्नत की दिखाई
रब नहीं हो पर नहीं कम घर सलामत आपसे है//5

हर घड़ी सज़दा तुम्हें मैं रूह से करता रहूँगा
मोम हरक़त आज पत्थर की ये आदत आपसे है//6

देख ‘प्रीतम’ मैं क़रीने से ज़बर होकर रहूँ अब
चार दिन की ज़िंदगी में जोश राहत आपसे है//7

शब्दार्थ- निस्बत-संबंध, मुरव्वत-सज्जनता, इनायत-कृपा, हिक़मत-तत्त्व ज्ञान या उत्तम युक्ति,नफ़ासत-कोमलता, अदावत-शत्रुता, उसरत-कंगाली या दरिद्रता, जन्नत-स्वर्ग, सज़दा-झुककर सलाम, क़रीने-तरक़ीब,

आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल

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