” विश्वास “
इकलौते बेटे का शव सामने रखा था परंतु माँ – बाप की आँखों में आँसू की एक बूंद नही थी , अभी घंटे भर पहले ही तो दीपक बोल कर गया था माँ बस थोड़ी देर में नदी से नहा कर आता हूँ….रोज़ का काम था उसका इतना बड़ा तैराक जो था ना जाने कितने तमगे लटके थे बैठक में कैसा गठा शरीर सुंदर मुखड़ा कहीं अपनी नज़र ना लग जाये ये सोच रोज लाडले की नज़र उतारती । कलेजा फटा जा रहा था ये सोच सोच कर की इतना बड़े तैराक की मौत भला डूबने से कैसे हो सकती है पुलिस कह रही थी की सर नीचे गड़ा था अभी तक चुप बैठी वो बड़बड़ाने लगी ” जरूर किसी ने मारा है मेरे बेटे को इतना बड़ा तैराक मेरा बेटा उस छोटी सी नदी में डूब कर नही मर सकता ” , इस बात को सालों बीत गये बिना आँसू बहाये अपने बेटे की तैराकी पर जो विश्वास तब था आज भी कायम है अपनी नियमित दिनचर्या दोनों दंपति जी रहे हैं , लेकिन उनको कभी भी रोते किसी ने नही देखा उनके दुख पर उनका विश्वास भारी था ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 08/10/2020 )