Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
8 Jul 2024 · 1 min read

कविता

मैं उसे बताना चाहती थी कि
नागफणियों में फूल आते हैं
विषधर प्रेम करते हैं
सूखे पेड़ों पर काई खिलती है
सफ़ेद आभा के मूल में समस्त रंग होते हैं
टूटे हुए घोंसलों में घर बनाते हैं कुछ पक्षी
खंडहर में आहट होती है, रौशनी पहुँचती है
फटी हुई किताब से नया कागज़ बनता है।
टूटी पत्तियों के नीचे अखुए निकलते हैं
और ये भी कि, “नाश के दुख से निर्माण का सुख नहीं मिटता।”
किंतु मैं ने उसे बताया
कि विषधर अपने बच्चे खा जाता है
बताया कि सूखे पेड़ पर उगी काई भी बरसात के बाद सूख जाती है
अधिकतर घोंसले टूट कर दोबारा घर बनाने लायक नहीं बचते
खंडहरों की आहट भयानक और रौशनी डरावनी होती है
फटी हुई किताब कभी भी पूर्ववत नहीं हो सकती
गिरी हुई पत्तियाँ एक दिन सड़ जाती हैं।
और निर्माण का सुख अपने साथ ही लाता है नाश का क्रूर भय भी…!
© शिवा अवस्थी

Loading...