विश्वास ही गायब
विश्वास ही गायब
लोग कहे मै जंगल राजा वो जंगल अब नहीं रहे
लोत को अब तो डूब गए वह युवा गांधी नहीं रहे
शासन तंत्र की धूरी अब तो दीमक ही है चाट रहे
युवक की ऑखो से अब तो आंसू भी है सूख रहे
ओ चमचों की बरात बनाकर
शासन को ही मार रहे
लोत अब तो डूब गया
लूला ही अब हो रहे
महाकुंभ की महा थी व्याख्या
नाथी का बाड़ा बना रहे
कोई तो अपने शासन को
ही बलि की वेदी चढा़ रहे
कब तक रोएगा वो अर्थी
ये अब हो रहे बर्फी बर्फी
विश्वास मरा नहीं मार दिया है
सरकार का हो सत्यानाश
शासन तंत्र के सभी लोगों का
हो जाए अब कत्लेआस
कहीं से खुश खबर की खबर नहीं
अर्थी अपने जीवन में दबे नहीं
लेकिन इस बार हद से अहद हो गई
अर्थियो से ये सरकार
अब खेऴा खेल गई
सद्कवि
प्रेमदास वसु सुरेखा