विशिष्ट हिन्दी भाषा
विशिष्ट हिन्दी भाषा
पाठक कहते ,सरल हिन्दी, संस्कृत की शहनाई।
मातृ भाषा मातृभूमि की,किलिष्ट विशिष्ट है भाई ।।
कनक मूल्य किमती रत्न,भारत मां की भाषा।
मरते दम तक पढ़ चलूं,ख्वाब यही, मन की आशा।।
शब्द सागर भरा पड़ा है,ब्याकरण कठिन है भाई।
मात्रा गणन,शब्द चयन,दोहा सोरठा चौपाई।।
बंधक छंद मौज उड़ाते, संगीत सागर में भाई।
पाठक कहते सरल हिन्दी,संस्कृत की शहनाई।।
बोलकर देखो शुद्ध हिन्दी,देखा मैंने अटकन।
गौर करों वाणी किसी का,देते बोली लटकन।।
अटकन भटकन दही चटाकन,बोलत बैठ मिश्रण।
टांग तोड़ हिन्दी का,लेख बताये सृजन।।
खिचड़ी भाषा बोल यहां, हिन्दुस्तानी कहलाओगे।
ब्याकरण भाषा लिख यहां,तब कविवर कहलाओगे।।
पीड़ा समझों प्रसव की,गला रूंध चली आईं है।
पाठक कहते सरल हिन्दी, संस्कृत की शहनाई।है।।
क्या समझे मातृभूमि को,रहन सहन है सस्ती।
खोलकर देखो हृदय मां का, भरी पड़ी है हस्ती।।
अर्द्ध गई तितरी बितरी, कामा गयो भुल जाय।
छलक नीर नयन बहे, साहित्य हिन्दी भुल आय।।
बार बार अध्ययन करो, साहित्य हिन्दी गहराई।
पाठक कहते सरल हिन्दी, संस्कृत की शहनाई।।
किलिष्ट भाषा हिन्दी हैं लिखत में कठिनाई।
न समझ सरल हिन्दी को,माप चलो गहराई।।
डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी वि खं आरंग जिला रायपुर छत्तीसगढ़