” विवाह “
” विवाह ”
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विवाह है सामाजिक प्रक्रिया व धार्मिक संस्कार !
जहाॅं सुयोग्य वर थामते एक कन्या का हाथ !
स्थापित करता अधिकारों और दायित्वों को यह !
होता जिसमें दो परिवारों, कुटुम्बों का सदा साथ !!
हिंदू धर्मानुसार, प्राचीन शास्त्रानुसार ,
विवाह संस्कार के होते हैं आठ प्रकार !
यथा : ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य ,
गन्धर्व, असुर, राक्षस एवं पैशाच !!
“ब्रह्म विवाह” ही होता सबसे श्रेष्ठ विवाह !
सुयोग्य वर से होता जिसमें कन्या का विवाह !
सहमति होती इसमें वर कन्या दोनों पक्षों की !
इसी का रूप होता आज का “व्यवस्था विवाह” !!
सम्पूर्ण जीवन अपना समर्पित करते ,
किसी अजनबी के हाथों में !
इतना अहम फैसला कभी ना लें ,
बस, चन्द ही मुलाकातों में !!
विवाह कोई खेल नहीं ,
जीवन भर का पवित्र नाता है !
सात फेरे अग्नि के लेकर ,
किया गया कुछ वादा है !!
सात फेरे अग्नि के लेकर ,
परस्पर खाते हैं कुछ क़समें !
गुंजायमान् वैदिक मंत्रोच्चार के संग,
विधिवत निभाते हैं कुछ रस्में !!
शुभ विवाह में मंत्रोच्चारण से ,
वर वधू हैं ये मंगलकामना करते !
हाथ थामा है तुम्हारा इसीलिए ,
संतान हों हमारी यशस्वी व बंधन अटूट रहे !!
विवाहोपरांत ही वैवाहिक जोड़े की ,
होती गृहस्थाश्रम की शुरुआत !
जिन्होंने सात सात क़समें खाये हैं ,
निभाने को सात जन्मों तक साथ !!
छोड़ बेटियाॅं बाबुल का घर ,
कदम रखतीं अपने ससुराल !
मन में नई नई उम्मीदें लेकर ,
करती इक नये जीवन की शुरुआत !!
वर के कंधे पर भी जिम्मेदारियाॅं आती ,
करते अपने गृहस्थ जीवन की शुरुआत !
खेल खेल में इतने दिवस यूॅं ही गुज़ारे ,
अब इतने से नहीं बनेगी कोई बात !!
करने होंगे कितने सारे दायित्वों का निर्वाह !!
__ स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण ।
__ किशनगंज ( बिहार )