विरह
विरह कई प्रकार का होता है,
पर अच्छा केवल भगवान,
के नाम पर होता है।
लगी विरह की पीढ़,
मीरा बाई जी बन गई डीठ।
जिस तन को लगती है,
वहीं इसका दर्द समझता है।
मीरा बाई जी को लाख मारने
का हर प्रयास होता रहा ,
पर उनको न इस बात को कोई ख्याल रहा।
हो मंगन , वह उठी झूम ,
कृष्ण के विरह में वह,
चली दुनिया घूम।
राज पाट सब त्याग दिया,
विरह का जब रोग लिया।
लोगों के तानों की न परवाह रही,
कान्हा के प्रेम में मीरा नाच उठी।