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22 May 2024 · 1 min read

विरह की वेदना

कुण्डलिया
~~
कभी नयनजल बह रहा, लेकर मन की बात।
कभी विरह की वेदना, लेकर सारी रात।
लेकर सारी रात, अश्रु जब छलका करते।
होता समय व्यतीत, दृगों को मलते मलते।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, बहुत है अश्कों में बल।
किन्तु बहे न व्यर्थ, देखिए कभी नयनजल।
~~~
दर्द जुदाई का कभी, कर लेना महसूस।
और जिन्दगी में कहीं, मत होना मायूस।
मत होना मायूस, देखना लेखा जोखा।
कहां हमारे साथ, हुआ करता है धोखा।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, गहन होती जब खाई।
असहनीय तब नित्य, हुआ है दर्द जुदाई।
~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २२/०५/२०२४

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