विधा-कविता
विधा-कविता
शीर्षक – प्रथ्वी पर स्वर्ग
बड़ा सुंदर दृश्य है कश्मीर का,बुला रहा है ,आओ पांव- पांव।।
ये डल झील,ये शिकारा,ये पर्वत, पुकारें है, आओ इक बार हमारे गांव।
भास्कर हुआ उदित,जन- जीवन हुआ आलोकित। खुशियों के पुष्प खिले, वादियां हुई पुलकित।।
सपनों की है यह नगरी,केशर की है फुलवारी।
कहते हैं धरती का स्वर्ग , खुबसूरती है बड़ी न्यारी।।
कश्मीर की चांदनी रात, देखों खिलखिला उठे पांत – पांत।
आते हैं सैलानी, नहीं देखते जांत पांत।।
गेंद समझ शबनम आई, फुटबाल लिली के पास।
मोगरे की भीनी खुशबू से, सांसें महक उठी, तृप्त हुई प्यास।।
गगन चुम्बी वृक्ष,बड़ा रहें हैं प्रकृति की शोभा।
शीतलता मिलें,तन – मन को,
जिंदगी में चुपके से दशतक दें ,प्रेम की आभा।।
सुंदर पोशाक,दस्तरखान,मन मोहक मुस्कान।
कहावा पेय से कर स्वागत, करते आवभगत,देते मान।।
कल – कल करती नदियां,सर- सर वहती हवा, फल-फूलों से लदी डालियों लागें,प्रथ्वी पर है जैसे जन्नत।
इक बार सैर करें कश्मीर की, होती हर किसी की मन्नत।।
विभा जैन (ओज्स)
इंदौर (मध्यप्रदेश)