विडम्बना
युगो -युगो से पूछ रही
अपनी आंख पसार,
किसे करे समर्पित
अपना निश्छल प्यार।
कोमलता की कली
किए नव श्रृंगार,
नव दीपित यौवन
लेकर मृदुल उपहार।
अल्हड़ता से वह
झूमा करती,
उन्मुक्त परी-सी
घूमा करती।
चुपके से आकर
मानस पर कोई छाया,
उसने भी सपनों का
नव संसार सजाया।
पूजक बनी प्रिय की
मन-मंदिर में बिठाया,
समर्पित किया स्वयं को
नेह का दीप जलाया।
देवता बन गया निर्दयी
पैरों तले ठुकराया,
युगों से यही इतिहास
बार-बार दोहराया।
—प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव,
अलवर(राजस्थान)