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15 Jun 2023 · 1 min read

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नित नये विज्ञापन –
उम्मीदों से लबरेज –
शब्दों के जादू से
दर्शकों को रिझाते ,
उत्पाद की खूबियाँ गिनाते ,
मन को ललचाते ;
तकनीक के रास्ते
दबे पांव ,
प्रवेश कर रहे हैं
युवाओं के दिल-ओ-दिमाग में ।
ये विज्ञापन –
बाजारवाद के पोषक –
निर्माताओं की कपोल कल्पनाएँ ?
या सुनियोजित साजिशें ?
विचारणीय प्रश्न है !

(मोहिनी तिवारी)

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