विजेता
आगे पढ़िए विजेता उपन्यास की पृष्ठ संख्या आठ।
यह सुनकर ममता ने दांतों तले उंगली दबा ली। वह हैरान होकर बोली,”अच्छ्या री माँ! उस बाबा जी महाराज म्ह तो गजब की शक्तित सै।”
“तूं उनके दर पै जाके देखिए नीमो। वै एक-एक बात न्यू बतावैंगे के तूं और बटेऊ सोचते रह जाओगे।”
“तूं गई थी माँ?”
“मैं तो ना गई,पर पड़ोस म्ह तै एक लुगाई गई थी। उसकी बात सुणके मन्नै थाहरो ख्याल आग्यो।”
पाँच बरसी बाबा के बारे में शमशेर तथा बाला को भी पता चल गया। वे भी उसके धाम पर जाने को तैयार हो गए। बाबा जी का धाम शमशेर और राजाराम के गाँवों के बीच में पड़ता था। शमशेर का गाँव इस बाबा के धाम से पूर्व दिशा में था तो राजाराम का गाँव इस धाम के पश्चिम की और था।
बाबा का यह नियम था कि वे शराब का सेवन करने वाले, पर-स्त्री की तरफ कुदृष्टि डालने वाले और पराए धन पर नजर रखने वाले के बारे में कुछ भी बताने से इंकार कर देते थे। ऐसे व्यक्तियों को अपने अंदर के ये अवगुण मिटाने होते थे और लगातार पाँच बरसों तक इन दोषों से दूर रहने पर ही वे अपने जीवन का अलग पाँच साल का भविष्य जानने के योग्य होते थे। यह चमत्कार ही था कि बाबा जी उपरोक्त अवगुणों से से युक्त व्यक्ति की उपस्थिति को तुरंत भ़ांप लेते थे और उनका सहायक उन्हे बाहर का रास्ता दिखा देता था। बाबा जी ने यह शक्ति योग व कड़ी साधना के बाद प्राप्त की थी।
इधर से शमशेर और उधर से राजाराम अपनी-अपनी पत्नियों के साथ बाबा जी के धाम पर पहुँच गए। वहाँ जाकर उन्हें पता चला कि पाँच बरसी बाबा धरती पर बैठकर लोगों के इस जीवन के पिछले पाँच कर्म व पाँच साल आगे का घटनाक्रम बताते हैं। राजाराम यह जानकर हैरान रह गया कि बाबा जी को केवल पाँच मिनट में यह पता चल जाता है कि यहाँ एक समान कर्मों वाले कौन-कौन व्यक्ति आए हैं। वे अपने सहायक को ऐसे व्यक्तियों के नाम नोट करवा देते और सहायक उन व्यक्तियों के नाम उनके गाँव के नाम के साथ बोल देता। दम्पति के मामलों में पति-पत्नी का नाम बोला जाता था। यह चमत्कार ही था कि जो व्यक्ति अपना भाग्य जानने के बाद दोबारा पाँच साल से पहले आ जाता, बाबा जी उसे लौटने को कह देते। राजाराम उस समय और भी हैरान रह गया जब बाबा जी ने कुछ व्यक्तियों का नाम(गाँव सहित) लेकर कहा,”अच्छे कर्म यूं ही करते रहो,प्रभु-कृपा से खूब सुख-समृद्धि और शांति मिलेगी”
यह सब देखकर शमशेर,बाला व नीमो जैसे लोग जरा भी हैरान नहीम थे क्योंकि वे बाबा जी को ईश्वर का दूत मान चुके थे परन्तु राजाराम का वकील दिमाग यह सब पचा नहीं पा रहा था। उसने अपनी जगह से उठकर बाबा जी के डेरे का गुप्त निरीक्षण भी किया परन्तु अंत मे वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि बाबा कोई साधारण संत नहीं है। वह कुछ सोच ही रहा था कि अचानक उसने देखा कि बाबा जी अपने हाथों से एक व्यक्ति को कुछ रुपये दे रहे हैं। यह देख उसने वहाँ बैठे एक बुजुर्ग से पूछा,”बाबा जी पैसे भी देते हैं?”
उस व्यक्ति ने सूट-बूट पहने हुए राजाराम की तरफ देखते हुए कहा,”बाबा महाराज जी उनकी मदत करे हैं जो पइसों के दम पे आगे जाई सकत हैं।”
राजाराम ने इस बात का पता बाबा के सहायक से किया। सहायक ने उसको बताया,”उस दानपत्र को देखो उसमें आप जैसे अमीर लोग अच्छा-खासा पैसा डाल जाते हैं और बाबा जी महाराज उसमें से उस व्यक्ति को पैसा दे देते हैं जिसे अगले पाँच सालों में तरक्की करने के लिए धन की जरूरत होती है। पाँच साल बाद वह व्यक्ति इतना समर्थ हो चुका होता है कि इस दानपत्र का कर्ज चुका देता है। यह श्रृंखला चलती रहती है। बाबा जी मोहमाया से इतनी दूर हैं, तभी तो हमसे अलग हैं।”
उस सहायक की यह बात सुनकर राजाराम के मन में बाबा जी के प्रति हैरानी की जगह आस्था ने जगह बना ली।