विछोह के पल
मिलन विरह का पल
विश्वाश नही था माँ बापू
ना होंगे संग का पल।।
ना जाने कौन सा पल मनहूस
काहू या परम्परा का पल ।।
जीवन मे आने जाने का पल
पल जिस कोख पैदा पल भर में हुआ
जुदा पल।।
वात्सल्य का आँचल पल भर
में ओझल बापू की गोदी ने आंखे मूंदी
काँहे का सिंघासन चार कंधो
का पल भर का आसन पल।।
क्या अजीब है जीवन
जिनके कारण है जीवन
उन्ही काया अस्तित्व को
आग लगाने का आता है
पल।।
कैसे कोई भुला सकता जीवन
खुशियो गम आंसू प्यार मोहब्बत
अक्षय अक्षुण का पल पल।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर