‘विचरण’
मन हिलोलें भर रहा,
कुछ चल विचल सी तरंग में,
ढूंढकर लाया है,कोई
जलरंग सी पहेलियाँ,
बूझकर वो ढिढोलियाँ,
कर रहा विचरण ये कहकर,
चल फिर हिलोलें भर सकें,
साथ में ही साथी तेरे
क्यूं न हम हो सकें,
मन हिलोलें भर रहा फिर’.
मन हिलोलें भर रहा,
कुछ चल विचल सी तरंग में,
ढूंढकर लाया है,कोई
जलरंग सी पहेलियाँ,
बूझकर वो ढिढोलियाँ,
कर रहा विचरण ये कहकर,
चल फिर हिलोलें भर सकें,
साथ में ही साथी तेरे
क्यूं न हम हो सकें,
मन हिलोलें भर रहा फिर’.