*दिन गए चिट्ठियों के जमाने गए (हिंदी गजल)*
जैसी नीयत, वैसी बरकत! ये सिर्फ एक लोकोक्ति ही नहीं है, ब्रह्
छह घण्टे भी पढ़ नहीं,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
उस दिन पर लानत भेजता हूं,
छाया है मधुमास सखी री, रंग रंगीली होली
कोई फैसला खुद के लिए, खुद से तो करना होगा,
बहुत कुछ अधूरा रह जाता है ज़िन्दगी में
जमाने की नजरों में ही रंजीश-ए-हालात है,
दोहे- उदास
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
लोकतंत्र तभी तक जिंदा है जब तक आम जनता की आवाज़ जिंदा है जिस
अक्सर लोगों को बड़ी तेजी से आगे बढ़ते देखा है मगर समय और किस्म
यूँ ही क्यूँ - बस तुम याद आ गयी
"राज़" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
23/24.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*