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ससुराल (घर से) से लौटा दिया हमको (लड़की), डर कर ही सही पर अपना ईमान, स्वार्थ दिखा दिया हमको। विदा होकर गयी थी ,जिस गली से,उसी में छोड़ गया हमको। हकीकत में हमें बेवा से बद्तर जिंदगी दे गया हमें। सौ बार सोचती ,मेरी जिंदगी बिना कसूर किस मोड़ पे है, जहां जीवन का हर उमंग टूटी हुई। थमी जिंदगी संस्कार के नाम पर जीती हूं। तमाम उम्र को लेकर कहां जाएं भगवान ।गृह से लेकर बालिका गृह तक रखें जाते गुप्त भेद, क्या तूने मुझे इसलिए बनाया भगवान।