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20 Oct 2021 · 1 min read

वाणी और द्रश्य से जीवन का संचालनः—

वाणी अदा में रही कितनी नजाकत,
स्वर अपनी नजरों में ब्यभिचार दिखाते।
द्रष्टि में कितना रहा आत्मिक आकर्षण,
स्वर की आव्रति गुलजार खुद बनाती रही।

तन के आवर्धन में कितना शरूर दिखा,
द्रष्टि और वाणी विश्राम रहे करते।
दिन और रात खुद रहे भटकते,
रहे वाणी नजरों में आवर्धन में सोये है।

। पढ़ना और लिखना अभी तक रहा तुझको,
कापी किताब सभी विधा में छुपाए रखी।
चाह और आशा में खुद स्यम रुके नहीं,
अंतर्ह्रदय में तुझको रहे रखे।

गांव के घर में प्यार से रहे रहते,
समय की विधाएं बहुत याद आती।
दुख दर्द कैसे अब मुझे दिखता,
प्यार और दर्द स्नेह में डूबे है।

बहुत दुश्क्रतियां हैं समाज में,
घर परिवार अपनी प्रतिमा इसमें रखते।
झूठ मक्कारी संग रही दरीद्रता,
बिना नसा किये वो अति पिये लगते।

अति दुष्टता जो जीवन में रही है,
परम श्रेष्ठ हेतु ऐसी विधा किये हैं।
भूंख प्यास से अबतक रहे जीवित,
गरीब निम्न समझकर हमसे दूर भागते।

जिस जंगल में कुटी औ मडैया,
दुख और दर्द सभी प्यार में छुपे हैं।
महल गाडियां जो हमने दिख,
हम सभी लोग उन्हें देख प्रसन्न होते थे।

सामाजिक विधाएं सबसे मिलना चाहती,
घास फूस खाकर वाणी अमृत पीती।
सब कुछ छोंड़ हम कहां पहुंचते,
वाणी और द्रश्य में जीवन बिता देते।

Language: Hindi
210 Views
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