“” *वाङमयं तप उच्यते* ‘”
“” वाङमयं तप उच्यते ‘”
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( 1 )” चलें “,
बोलते ऐसी भाषा,
जो हो मधुर और कर्ण प्रिय !
और कभी ना किसी का दिल दुःखाएं….,
सदैव जीतते चलें यहाँ पे सभी का हृदय !!
( 2 )” करें “,
ना ऐसा कार्य,
जो हो किसी के लिए अहितकारी !
और चलें देते जीवन में सत्य का साथ….,
सत्कर्म करते, बनें रहें सदा परोपकारी !!
( 3 )” कहें “,
ना शब्द कदापि,
जो किसी के अहम् को ठेस पहुँचाएं !
और चलें कराते सत्य का साक्षात्कार …..,
स्वयं से स्वयं की मुलाक़ात यहाँ हो जाएं !!
( 4 )” पढ़ें “,
धर्मग्रंथ वेद वाङ्मय,
सुनें श्रीकृष्ण की अनमोल वाणी !
और करते चलें सात्विकता संग व्यवहार….,
मन वचन कर्म से पहुँचाएं ना किसी को हानि !!
( 5 )” सोचें “,
विचारें मनन करें,
नित्य करते चलें वाणी का तप !
और यहाँ पे कम बोलें, सुनें ज्यादा…..,
सदा करते चलें श्रीहरि नाम संकीर्तन जप !!
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सुनीलानंद
शनिवार,
11 मई, 2024
जयपुर,
राजस्थान |