*वह अनाथ चिड़िया*
वह अनाथ चिड़िया!_____________________
हाड़ कंपाती पूस की ठंढ़, सिर से पाँव ढंके तन , सूरज की हल्की लाली संग मैं बाहर घर से निकली थी। काँटों की झुरमुट से क्रंदन नन्ही-सी चिड़िया की आई। मैं धीरे-धीरे कदमों से उसे ढूँढती वहाँ पहुंच गयी। थोड़ी देर ठिठक कर, मैनें विस्मित देखा चारो ओर शायद कोई बला पड़ी हो एक भले परिवार पर या बिछड़ गयी हो नन्ही जान अपनी प्यारी जाई से।
लेकिन मेरी आहट से वह थोड़ी और सहम गयी। धीरे-धीरे क्रन्दन उसकी सिसकीयों में ढल गयी। सह उपेक्षा की ज्वाला तन में ले अनगिनत पीड़ धरती के आँचल में लिपटी अम्बर की चादर ओढ़े रेत कंटीली सेज पर वह निपट अकेली सारी रात बितायी थी।जग सोया था तब रोई थी , लेकिन भोर की लाली से उसकी काया घबराई थी।
गूँथ रही थी सांसे उसकी वर्णमाला चिंगारी की। मानो! कहीं भली थी रात काली डरे हुए थे रावण सारे,क्यों छेड़े दिवाकर दर्प दिखा कर, तारों का परिहास न काफ़ी? आंच कर मैनें उसकी अनकही व्यथा भी चाहा स्पर्श उसका दया भाव दर्शा कर, सोंचा! वह सहज़ हो जाएगी, मेरी ममता पा कर। लेकिन मारे क्रोध के तन कांप उठा था उसका, जैसे वेग पवन से सोता सागर तिलमिला कर जाग उठा हो। निश्छल आँखो से बहती अश्रु की धार, मारे रोष लगा दहकने बन आँगार। मुख लाल किये, वह काली बोधित हो कर, मुझे मेरी हद बतलाई थी।
बोली, मैं केवल मर्त्य शरीर नहीं, दिव्य प्रकाश से परिपूर्ण सनातन सत्ता का प्रतिक! लेकिन,धरती के लज्जाहिन समाज का शायद एक शापमय वर, मैं एक कर्ण-कबीर हूँ! शून्य मेरा जन्म; मृत्यु है मेरा सवेरा, प्राण आकुल भाग्य को साथ मिला अन्धेरा! मचली थी मैं भी कोख में, बाबुल के आँगन आने को, अपनी मधुर किलकारी से उनकी बगिया उजियाने को, पर देखो! बिखरी माला किस्मत की ! कचरा बन कर मिट रही है पाप किसी दुष्कर्मी की!लौट गयी है निशा की काली, उषाएँ लौट जायेंगी, हम प्रकृति में रहेंगे, साश्वत सत्य है यही । नहीं प्रतीक्षा मुझे किसी की न कोई आस उजालों से, जन्म दे कर वो अरिदल हो गये आस करुँ क्या दानव के दरबारों से? मैं भी पल कर जैसे- तैसे काली-दुर्गा बन जाऊंगी या खा जायेंगे चील-कौवे मुझको नोच- खसोट कर। युग-युग तक चर्चा होगी मेरी, लोग कहानी खूब गढेंगे, खूब बिकेगी अखबारों में व्यथा मेरे अपमान की।
अगर बची जिंदा तो लिखुंगी मैं भी एक कहानी
त्रिदेव तेरे संसार में अनाथों के बलिदान की।
मुक्ता रश्मि
मुजफ्फरपुर, बिहार
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