वर्षा वाबरी
पागल-वर्षा बाँवरी
मन ही मन बौराई
तपती धरती जैसे जैसे
बरखा बरसे तैसे तैसे
धरती भीगी कन कन
भीगा मन छन छन
तृण तृण में शीतलता लाई
पागल-वर्षा बाँवरी
मन ही मन बौराई
दादुर का टर्र टर्र
पत्तों की खर्र खर्र
प्यासी धरती पर आई बहार
जैसे मिला हो जीवन हार
किसानों को खुशहाली लाई
पागल-वर्षा बाँवरी
मन ही मन बौराई
ठहरी कुछ पल धरती पर
सुमंगल शान्ति लाई
मेरे को गालों पर चूमा जैसे
लतिका कोई शरमाई
अमृत पान अधरों को पिलाई
पल दो पल में भिगो गई
पागल-वर्षा बाँवरी
मन ही मन बौराई