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16 Feb 2021 · 1 min read

‘ वफा – ए – मुहब्बत ‘

इतने नासमझ तो नही तुम
जो ऐसे अनजान बने बैठे हो
या जानबूझ कर मेरी मुहब्बत से
झूठ मूठ में नाराज़ हुये ऐठे हो ?

तुमको मेरी चाहत का अंदाज़ा नही
अपनी हिचकियों को क्या समझते हो
ये बार – बार पानी का गिलास उठा कर
मेरी चाहत को नज़र – अंदाज़ करते हो ?

तुमको मेरी वफा समझ नही आती
या समझना ही नही चाहते हो तुम
क्यों मेरी वफा – ए – मुहब्बत से
इस कदर बेचैन हुये बैठे हो तुम ?

ऐसा क्या है जो समझ नही आता
इतने सरल – संयोग को तुम
अपनी बेवजह की सोच से
बेहद क्लिष्ट – वियोग किए बैठे हो तुम ,

चलो माना की बदले में तुम मुझको
वफा – ए – मुहब्बत दे नही सकते हो
लेकिन मेरी मुहब्बत का तहे दिल से
इस्तक़बाल तो कर सकते हो तुम ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 04/02/2021 )

Language: Hindi
1 Like · 218 Views
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