कोई खुशबू
कोई खुशबू मिट्टी से आने लगी है।
बरखा रानी बूंदें टपकाने लगी है।
उड़ती फिरती थी मिट्टी दर ब दर
धरा को सीने से लगाने लगी है।
सौंधी सी इसकी आती महक है
मन में पिया की याद जगाने लगी है
कुम्हार को है देना नया रूप इसे
किस्मत चाक पर इसे घुमाने लगी है।
आसान नहीं महक देना किसी को
ये अपना वजूद मिटाने लगी है।
सुरिंदर कौर