“वजूद”
देखें क्या हाल हो गया आदमी का रोटी कमाने में।क्या मैनें ठीक कहा? पढ़िये और बताइये :-
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“क्षणिका”
“वजूद”
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वजूद मेरा
खा गया
शहर यह तेरा;
पत्थर सा,
हो गया हूँ ;
ठोकर खा खा,
के पहुँचा,
अब तेरे ,
दर के पास।
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राजेश”ललित”शर्मा
२४-१-२०१७
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