वजूद है मेरा
वजूद है मेरा
हनक है मेरी
यह आसमान
यह धरती
यह भोर
यह रश्मि
सब मेरी हैं
सूर्य है क़ैद
भोर मुट्ठी में
द्वार पर रथ
किसके हैं..?
सब मेरे हैं!!
पसारूँ पाँव तो
सागर मचलता है
मेरी साँसों से ही
गगन चमकता है।
बंद कर लूं आँख
दिन ढल जाता है
चाँद ऊँघता है यूँ
तन्हा रह जाता है।
सर पर ये सितारे
चादर ढक जाते हैं
हर सुबह की आस
में, नित मर जाते हैं।।
आदमी हूँ
वक़्त बदलना जानता हूँ
परछाई को अपनी
मैं ही पहचानता हूँ ।।
सूर्यकांत द्विवेदी