वचन सात फेरों का
वचन उन सात फेरों का मैं अंत तक निभाऊंगी,
तेरे ही नाम से अब तो मैं जानी जाऊंगी,
लाल सिंदूर को तो मैं अपना सौभाग्य बताऊंगी,
मेरे माथे की बिंदी भी तेरे ही नाम है सजना,
उस बिंदी से हर पल मैं अपना रूप सजाऊंगी।
वचन उन सात फेरों का मैं अंत तक निभाऊंगी,
मेरे हाथों पे मेहंदी से तेरा नाम लिखवाऊंगी,
धागा प्रीत का गले में मैं हरदम सजाऊंगी, मेरे होंठो की लाली भी तेरे लिए है ओ सजना,
मैं इन होठों से हर पल बस तेरा नाम ही पुकारूंगी।
वचन उन सात फेरों का मैं अंत तक निभाऊंगी,
तेरे सम्मान में सर पर ये चुनर लगाऊंगी गजरा डाल बालों में तुझे एहसास कराऊंगी
मेरे आंखों के झीलों में दिखाई दे तू बस सजना
तेरी आंखों के आगे मैं अपना दिन-रात बिताऊंगी।
वचन उन सात फेरों का मैं अंत तक निभाऊंगी,
मेरी चूड़ी की खनखन से तुझे संगीत सुनाऊंगी,
मेरी पायल की छम छम से तेरा आंगन
सजाऊंगी,
तेरे हृदय की धड़कन को कर दे नाम मेरे सजना,
तेरी धड़कन को सुनकर मैं अपनी सासें चलाऊंगी।
वचन उन सात फेरों का मैं अंत तक निभाऊंगी,
थामा हाथ है तेरा न मैं ये हाथ छोडूंगी,
विपदा कोई भी आ जाए मैं ना साथ छोडूंगी,
मेरे इस प्रेम का सम्मान सदा ही रखना ओ सजना,
मैं सबसे प्रेम को तेरे मेरा जीवन बताऊंगी।
वचन उन सात फेरों का मैं अंत तक निभाऊंगी।
लक्ष्मी वर्मा ‘प्रतीक्षा’
खरियार रोड, ओड़िशा।