“वक्त के गर्त से”
“वक्त के गर्त से”
अब भी वक्त के गर्त से
झाँकते हुए झरोखे
गवाही देते हुए लगते हैं
कि कितना खुशनुमा था
स्मृतियों में बसे वो गाँव,
कंछ समान तालाब का पानी
पेड़ों पर बन्धे झूले
अमराई की सघन छाँव।
“वक्त के गर्त से”
अब भी वक्त के गर्त से
झाँकते हुए झरोखे
गवाही देते हुए लगते हैं
कि कितना खुशनुमा था
स्मृतियों में बसे वो गाँव,
कंछ समान तालाब का पानी
पेड़ों पर बन्धे झूले
अमराई की सघन छाँव।