वक्त की रेत
वक्त की रेत फिसलती जाते हैं हाथों से।
और वो बहलाते जा रहे हैं हमें बातों से।
कौन रूकता है किसी के लिए अब समझे
क्यों बेकार ही हम , इश्क में जा उलझे।
सफेदी आ गयी जब से हमारे बालों पर
रफ़्तार जिंदगी देखी बिलखते गालों पर।
बहुत मायूस रहे हम इतनी उम्र जी कर
होश आया तब जब उठे बोतल पी कर।
न रूका हैं ,न थका है वक्त का परिंदा,
बस इतना समझो सब है मर कर जिंदा।
Surinder kaur